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मेरे पास मॉ है? कुछ लोग इतने गरीब होते है,उनके पास धन के अलावा कुछ भी नही होता

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42 वर्ष उम्र में भारतीय उप महाद्वीप का विश्व के नामी सॉफ्टवेयर का सीईओ, एमडी होना, मान सम्मान, पैसा, शोहरत का आंकाक्षी कौन नही होना चाहेगा?  लेकिन कई लोगो के लिये यह पर्याप्त नही होगा। अंजाम हार्ट अटेक या अन्य बिमारी से असमय मौत।

दीवार फिल्म का प्रसिद्ध डायलाग, अमिताभ बच्चन, शशिकपूर के बीच संवाद।

अमिताभ बच्चन-मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, तेरे पास क्या है?

शशिकपूर-मेरे पास मॉ है, मॉ,

आज की हकीकत बडे-बडे शहरो में वर्तमान परिवेश में एक ने दूसरे व्यक्ति कोे कहता है, उसके पास घोड़ा है, गाड़ी है। तेरे पास क्या है? दूसरे ने कहा मेरे पास पार्किंग स्पेस है। 

हमारी खरीददारी के दो विश्वास –

(1) अगर मेरे पास अधिक समान होगा तो सब कुछ बेहतर होगा। 

(2) अगर यह सब होगा तो दूसरे मेरा अधिक मान करेगे। 

वस्तुतः पर्याप्तता (थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है) में जीवन का संतुलन भी निहित है। 

मॉ का पास मे होना, वर्तमान समय में मुम्बई जैसे शहरो में पार्किंग स्पेस का होना, जो जरूरी है, वही खरीदना, यही पर्याप्तता की निशानी है। जो प्राथमिक है द्वितीयक का आधार ही प्राथमिक है। वर्ना अधिकतम की कोई सीमा नही है। न्यूनतम की सीमा निर्धारित की जा सकती है।

तात्पर्य है मॉ का पास में होना, पार्किंग स्पेस एवं जीवन में अधिक भौतिक चीजो के प्रति नजरिया ये चीजे जीवन में पर्याप्तता (ईनफ) या सब कुछ होने के बाद भी इन चीजो को पर्याप्त न मानकर और अधिक और अधिक पाने की अपेक्षा कही हमको हम से, अपनो से दूर या मौत के करीब तो नही ले जा रहा है? 

ब्रायन डायसन तत्कालीन समय में कोका कोला के सी.ई.ओ. रहे है। उन्होने जीवन को पॉच गेन्दो से जगलिंग करता हुआ खेल माना है और, आदमी को जोकर, जिस प्रकार सर्कस में एक जोकर पॉच गेंदो का जगलिंग करते हुये गेंदो का संतुलन बनाता हुआ, अपने खेल का प्रदर्शन करता है, वैसा ही हम अपने जीवन संचालन करते है, जिसमें से पॉच गेंदो में आर्थिक (जैसे नौकरी या धंधा) रूपी गेंद को छोड़कर शेष चार गेंद परिवारीक, स्वास्थ्य, मित्र एवं धार्मिक रूपी गेंद कॉच के बने होते है, जबकि आर्थिक गेंद रबर का बना होता है। 

इन गेंदो में रबर के गेंद गिरने के स्थिति में पुनः उसी अवस्था बिना टूटे या बिना क्रेक के पुनः प्राप्त किया जा सकता है। मतलब आर्थिक चीजो नौकरी या धन की कमी को पूर्ति उसी शक्ल में कि जा सकती है। 

लेकिन शेष परिवार, मित्र, स्वास्थ्य, धार्मिक, आदि जो कॉच के बने होते है, वह गिरने के स्थिति में भले ही न टूटे लेकिन क्रेक तो अवश्य ही हो जाता है। इन गेंदो को उसी अवस्था में प्राप्त नही किया जा सकता, अर्थात परिवार, मित्र, स्वास्थ्य में जब भी दरार आता है। उसे भरना मुश्किल है। हमारे जीवन मे हम सब लोग सर्कस के जोकर की तरह जीवन के आर्थिक, परिवारीक, स्वास्थ्य, मित्र व धार्मिक रूपी गेंदो का जगलिंग करते हुये संतुलन बनाते हुये अपने जीवन का संचालन करते है। जो इन गेंदो का संतुलन नही करता वह असफल आदमी होता है। 

जीवन मे संतुलन अत्यन्त ही जरूरी है, अधिकतम संतुलन का परिचायक नही है लेकिन न्यूनतम के पैमाने पर हम अपने जीवन का संचालन अच्छे से कर सकते है। 

एक तबका मिनिमलिज्म (न्यूनतमवाद) में जीता है तो दूसरी ओर दूसरा तबका भी है जो “ये दिल मांगे मोर“ पर रात दिन भीडे़ रहते है, यहॉ तक की रात को कम सोना, कुछ भी खा लेना और इस जैसे चीजो का भी गुणगान करना, जो प्रकृति के साथ प्रकृति रूपी जो शरीर मिला है उसके साथ भी खिलवाड है। 

सेप (सिस्टम एप्लीकेशन एण्ड प्रोडक्ट्स इन डाटा प्रोसेसिंग) जो साफ्टवेयर के क्षेत्र में विश्व अग्रणी संस्थान है, के भारतीय उप महाद्वीप के सीईओ और एमडी श्री रंजन दास महज 42 वर्ष के उम्र में हार्ट अटेक से मृत्यु हो गयी। मरने के महज कुछ महीने पहले वे चेन्नई मैराथन में भाग लिये थे। वह यंगेस्ट सीईओ रहे है। उन्होने कुछ दिन पूर्व एनडी टीवी में कम सोना, निंदा लेना को स्वीकार किया था। टाईम्स आफ इंडिया के साक्षात्कार में उन्होने चार घंटे के नींद को पर्याप्त बताया था। हो सकता है, नींद के संबंध में हमारे वैचारिक मतभेद हो सकते है, लेकिन एक चीज तो तय है, हर चीजो के संचालन के लिये प्राकृतिक एवं कृत्रिम नियम होते है, कृत्रिम नियम का उल्लंघन के लिये आपको माफ भी किया जा सकता है, लेकिन प्राकृतिक नियम के उल्लंघन के लिये माफी नाम का चीज नही है, और उसका इंजाम मौत है। 

वास्तव में आधुनिकता के इस दौर में हम कितने भी संतुष्ट क्यो न हो लेकिन जब तुलना वाली बात होती है, तो हम जब भी दूसरो से तुलना करना चालू करते है, तो हमारी शांति, अंशाति में बदलने में देर नही लगती और यह यही तक नही रूकती, जीवन में कई अनैतिक कार्य करने को प्रेरित करती है और कई बार गुमनामी के अंधेरे कुंए में भी ढकेल देती है।

यही तुलना ही तो, जिसके चलने मै यह कहने को मजबूर हो जाता हूॅ कि आदमी कितना भी अमीर क्यो न हो जावे लेकिन पड़ोसी की गाड़ी और पडोसन की साड़ी उसे हरदम गरीब बनाये रखती है।

जीवन बहुत ही बहुमूल्य है, खुशी बहुत ही बहुमूल्य है, भौतिक चीजे अल्पकालीन खुशी देता है लेकिन अभौतिक चीजे जो आंतरिक रूप से महसूस करने वाले है, वह निरंतर ही खुशी, मुस्कान देता है।  इसीलिये रिचर्ड ब्रान्सन वर्जिन ग्रुप के मालिक ने ठीक ही कहा है –

मैं खुश हॅू इसलिये अमीर हूॅ,

मैं अमीर हूॅ इसलिये खुश नही हूॅ।

और अंत में –

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई

मै घर मे सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मॉ आई।

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